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क्षीरोदन्वत्सुकन्या करिवरविनुता नित्यपुष्टाक्ष गेहा ।

It had been listed here far too, that The good Shankaracharya himself installed the picture of the stone Sri Yantra, Probably the most sacred geometrical symbols of Shakti. It may possibly still be considered right now inside the inner chamber with the temple.

Her representation isn't static but evolves with creative and cultural influences, reflecting the dynamic nature of divine expression.

दक्षाभिर्वशिनी-मुखाभिरभितो वाग्-देवताभिर्युताम् ।

The devotion to Goddess Shodashi is usually a harmonious mixture of the pursuit of natural beauty and The hunt for enlightenment.

अष्टारे पुर-सिद्धया विलसितं रोग-प्रणाशे शुभे

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥

हन्यादामूलमस्मत्कलुषभरमुमा भुक्तिमुक्तिप्रदात्री ॥१३॥

॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥

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The philosophical dimensions of Tripura Sundari increase over and above her physical characteristics. She represents the transformative electric power of magnificence, which often can guide the devotee within the darkness of ignorance to The sunshine of knowledge and enlightenment.

षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥

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